केंद्र के करीब रहने से वह संभव है कि केंद्र विश्वास को संभाल ले,लेकिन इसके लिए केंद्र से इतनी दूर ना जाया जाए,जहां से इसका कंट्रोल समाप्त हो जाए।जिस प्रकार सभी वस्तुओं का केन्द्र एक ही होता है जिस पर उसका पूरा भार रुक जाता है,लेकिन यदि उस वस्तु पर कहीं से दवाब पड़ेगा तो वास्तिविक केंद्र निश्चित ही हैट जाएगा, जिससे संतुलन बिगड़ेगा और वस्तु अपने केंद्र पर न रुक कर नीचे गिर जायेगी। उसी प्रकार से मन के विश्वास का भी उसके अंत करण में भी एक केंद्र होता है जो ईशवरीय शक्ति से परोक्ष रूप से जुड़ा होता है।किसी दबाव से जब यह डिस्टर्ब होता है,तभी डगमगाने लगता है।विश्वास का केंद्र ईश्वरीय शक्ति का वह प्रभावशाली केन्द्र होता है जहां से न केवल व्यक्तियों के विश्वास टिके रहते है,बल्कि पूरी दुनिया ही टिकी रहती है।जब जब इस विश्वास पर बेकार का दबाव पड़ता है तब तब इसका मूल केंद्र इससे हट जाता है।इसीलिए विश्वास पर पड़ रहे अनावश्यक दबावों से उसे दूर रखा जाए।ऐसा होने पर ही विश्वास का केंद्र विश्वास के भार को संभाल कर इसे खड़ा रखेगा।
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