SPIRITUALITY IN HINDI| विश्वास क्या है ।आध्यात्मिक उन्नति


विश्वास वह अनमोल ओषधि, जो मन में उपजे असमंजस को समाप्त कर इसमें इस्थिरता का समावेश करती है,जबकि अविश्वास उस हल्के विष के समान है जो मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव डालकर उसकी प्राकृतिक शक्ति को कमज़ोर करता रहता है।इंसानो में विश्वास व अविश्वास का परस्पर भेद तो व्यक्ति के अनुभव के आधार पर ही सुनिश्चित होता है,लेकिन कभी कभी ऐसा भी हो जाता है जब विश्वसनीय अविश्वसनीय से दिखने लगते है। इस विश्व में हर व्यक्ति हर दुसरे के लिए न तो विश्वसनीय हो सकता है और न ही अविश्वसनीय ,किन्तु अनुभव दुआरा इसका भेद करके वह अपनी जीवन रूपी गाड़ी को चलाता रहता है।यदि किसी के समक्ष ऐसी इस्तिथि आ जाये जब उसे हर चीज़ अविश्वसनीय लगने लगे ,तब वह भय और भ्रम मन में निश्चित ही समा जाएगा।ऐसा तभी होता जब वह अपने वास्तिविक केंद्र से दूर हो जाता है।मन में इस्थिरता तभी आ सकती है जब व्यक्ति विश्वास से भरे हुए शक्तिशाली केंद्र के परिधि में ही रहे।ऐसा करते रहने से केंद्र में समायी हुई ईश्वरीय शक्ति मस्तिष्क में  जाती रहती है।
केंद्र के करीब रहने से वह संभव है कि केंद्र विश्वास को संभाल ले,लेकिन इसके लिए केंद्र से इतनी दूर ना जाया जाए,जहां से इसका कंट्रोल समाप्त हो जाए।जिस प्रकार सभी वस्तुओं का केन्द्र एक ही होता है जिस पर उसका पूरा भार रुक जाता है,लेकिन यदि उस वस्तु पर कहीं से दवाब पड़ेगा तो वास्तिविक केंद्र निश्चित ही हैट जाएगा, जिससे संतुलन बिगड़ेगा और वस्तु अपने केंद्र पर न रुक कर नीचे गिर जायेगी। उसी प्रकार से मन के विश्वास का भी उसके अंत करण में भी एक केंद्र होता है जो ईशवरीय शक्ति से परोक्ष रूप से जुड़ा होता है।किसी दबाव से जब यह डिस्टर्ब होता है,तभी डगमगाने लगता है।विश्वास का केंद्र ईश्वरीय शक्ति का वह प्रभावशाली केन्द्र होता है जहां से न केवल व्यक्तियों के विश्वास टिके रहते है,बल्कि पूरी दुनिया ही टिकी रहती है।जब जब इस विश्वास पर बेकार का दबाव पड़ता है तब तब इसका मूल केंद्र इससे हट जाता है।इसीलिए विश्वास पर पड़ रहे अनावश्यक दबावों से उसे दूर रखा जाए।ऐसा होने पर ही विश्वास का केंद्र विश्वास के भार को संभाल कर इसे खड़ा रखेगा।




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