दोस्तो आपने सूर्य और चंद्र ग्रहण के बारे में तो सुना ही होगा
आज आप सबको इसके पीछे छिपा रहस्य बताने जा रहा हूँ।हिन्दू धर्म के अनुसार चंद्र ग्रहण के बारे में एक कथा है जिसमें
यह बताया गया है कि सागर मंथन के समय देवताओं और असुरों में विवाद उत्पन्न हो गया था।
Source : wikipedia
सभी देव अमृत पान करके अमर होना चाहते थे।
अपना खोया हुआ सम्मान पाने के लिए इंद्र देव विष्णु भगवान के पास गए और उनकी सलाह से
वह क्षीर सागर का मंथन करने के लिए तैयार हुए, जिससे उत्पन्न होने वाले अमृत को देवताओं को पिलाना था।
इतने बड़े सागर को मथने के लिए वासुनिग नाग और मंदार पर्वत की सहायता ली गई। इतना बड़ा कार्य करना
देवताओं के लिए मुश्किल था इसीलिए इसमें असुरों की भी सहायता ली गयी। सागर मंथन के समय बहुत
सी चीजें निकली जैसे विष का प्याला,इच्छा पूरी करने वाली कामधेनु गाय जिसे ऋषियों ने रखा, ऐरावत हाथी जिसे इंद्रदेव ने रखा, कस्तुभ मणि जिसे भगवान विष्णु ने अपने पास रखा, फिर उच्चे:श्रवा घोड़ा निकलने पर दैत्यराज बलि ने उसे रखा,फिर माता लक्ष्मी जिन्होंने विष्णु भगवान को अपने वर के रूप में स्वीकार किया।
उसके बाद कल्पव्रक्ष और रम्भा नामक अप्सरा निकली। अब शर्त यही थी कि सागर से निकलने वाली हर चीज़ को किसी न किसी को ग्रहण करना था पर विष निकलने पर कोई उसे ग्रहण नहीं करना चाहता था। विष ग्रहण न करने की वजह से मथने की प्रक्रिया रुक गयी और सभी देव और असुर लड़ने लगे क्यों की विष कोई भी पीना नही चाहता था। असुरों के हाथ अमृत न लग जाये और मंथन प्रक्रिया दोबारा आरंभ हो सके इसीलिए भगवान शिव ने वो विष का प्याला ग्रहण किया।
यह देखकर माता पार्वती ने अचानक से शिवजी के कंठ को पकड़ लिया और न ही विष शरीर में जा सका और न ही मुँह से बाहर जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना गया।समुन्द्र मंथन के समय बहुत सी चीजें निकली लेकिन सभी को इंतज़ार था तो सिर्फ अमृत का ।
और अब बारी थी अमृत के प्याले की सभी देव और असुर इसे पाना चाहते थे। तभी भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक अप्सरा का रूप धारण किया ताकि असुरों का ध्यान इस्री पर रहे और देव अमृत पान कर ले।
लेकिन तभी एक असुर देवताओं की लाइन में आ गया और उसने अमृत पान कर लिया।
चंद्र देव और सूर्य देव ने ,राहु को ऐसा करते देख लिया और विष्णु भगवान को बताया । भगवान ने क्रोध में उसका धड़ शरीर से अलग कर दिया लेकिन अमृत पान करने के कारण वह मरा
नहीं बल्कि उसके सिर वाला हिस्सा राहु और धड़ वाला हिस्सा केतु के नाम से जाना गया।राहु और केतु दो राक्षस थे जिनका वध बाद में माता काली के द्वारा किया गया था। इसी कारण राहु-केतु सूर्य और चंद्रमा से बैर रखते है और आने वाले समय में उनके प्रकाश को पूरी तरह खत्म कर देते जो अकसर चंद्र और सूर्य ग्रहण के नाम से जाना जाता है। तो इसी तरह सूर्य और चंद्र ग्रहण की शुरुआत हुई।
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