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जिंदगी की वास्तविक समझ अनुभव से पैदा होती है।हम अपनी क्षमताओं का समुचित आकलन और नियोजन
अनुभव के माध्यम से ही कर सकते है। अनुभव किये बगैर
न तो हम जिंदगी जी सकते और न ही अपने अंदर समाई दिव्य क्षमताओं का परिचय पा सकते है। हम आखिर है कौन?
और हमारे अंदर क्या है,जो बाहर फूटकर आना चाहता है
?क्षमताएं अंदर सुप्त रूप में पड़ी रहती है।इन्हें तभी जगाया और जगाकर निर्दिष्ट कार्यों में नियोजित किया जा सकता है,जब हम इन्हें गहराई से महसूस करेंगे।इन्हें हम जितना महसूस करेंगे उनकी पहचान उतनी ही अधिक होगी। क्षमताओं को महसूस करना कोई बौद्धिक
व्याख्या नहीं है और कोई तर्क भी नहीं है कि ऐसा होगा या नहीं होगा।इनके बारे में तभी सार्थक रूप से बताया जा सकता हैं, जब इनकी बारीकियों को महसूस करेंगे ।जीवन में असीम क्षमतायें समाई हुई है,परन्तु ये सोई पड़ी है।
ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जो इन दिव्य विभूतिओं से वंचित होगा।सभी में ऐसी महान विभूतियां समायी हैं कि उनके अंश उभरकर सामने आने पर मनुष्य कहां से कहां पहुँच सकता हैं।जीवन की राहें कटीले काँटो से अटी पड़ी है जिन्हें भेदकर गुलाब का सुखद स्पर्श किया जा सकता हैं। एक ने निरी कल्पना की, परन्तु दूसरे ने उसका यथार्थ अनुभव किया और उसने अनुभव के लिए अपनी पूरी कुशलता को झोंक दिया।इसके बाद ही वह सब कुछ उपलब्ध कर सका।क्षमता को सतत प्रक्रिया से उभारा जा सकता हैं।निरंतर प्रयास से क्षमता निखरती है,परन्तु इसके ठीक विपरीत रुक
जाने से ये छिप जाती है,ढक जाती है।क्षमता राख की परतों में ढकी हुई होती हैं।जो इसे महसूस करता है ,उसे अंगारों के समान धधका देती हैं।क्षमताओं का आकलन परिस्थितियों के आकलन से हो जाता हैं।क्षमता की सही समझ और परिस्थितियों के सही नियोजन से विकास की ऐसी अविरल धारा फूट पड़ती है ,जिसे हम प्रतिभा कहते हैं।
प्रतिभा कुछ नहीं ,बल्कि हमारी क्षमताओं और परिस्थितियों के बीच सामंजस्य स्थापित कर श्रेष्ठ और नया करने के लिए सतत अवसर तलाशने और उससे गुज़रने के हौसले का नाम है ।हम अपनी क्षमताओं का जितना अनुभव करेंगे ,हमारी
प्रतिभा उतनी ही विकसित होगी।
डॉ.सुरचना त्रिवेदी
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