क्या होता है मौत के बाद ?|what happen after death in hindi?

Kay hota marne ke baad
What happenen after death
गीता में कहा गया है कि मरण इस सृस्टि की नियति है।इंसान का दह मर जाता है पर आत्मा जीवित रहती है।जैसे हम कपड़े बदलते उसी प्रकार आत्मा भी शरीर बदलती है।
पर आप सभी ने कभी ये सोचा है कि अगर आत्मा शरीर त्याग देती है तो नर्क लोक मैं उसे  यातना कैसे मिलती है क्योंकि आत्मा तो हर स्पर्श से परे है दरसल इस सभी का ज्ञान हमे गरूड़ पुराण में मिलता है ।
Punishment of hell
Punishment of hell
जब कोई मरता है तो उसे एक सेकंड एक  अरसा सा प्रतीत होता हैं। शरीर से आत्मा का निकलना अत्यंत पीड़ादयाक होता है। इस सृस्टि के निर्माण के लिए भ्रमा, विष्णु और महेश ने पंचभूतों के रचना की थी।
यह पांच भूत है हवा,पानी,धरती,शरीर और आत्मा। इन सभी चीज़ों से ही हमारा शरीर बना है और अंत में इसी में मिल जाता है। एक बार आत्मा शरीर को त्याग देती है तो उसे दिव्य दृष्टि मिलती है जो सिर्फ भगवान के पास होती है ताकि वह सारे संसार को एक सात देख सकें।
यमराज
Yamraaj

गरुड़ पुराण में कहा गया है कि आत्मा के निकलते समय यमराज प्रकट होते है जो शनिदेव के भ्राता है । यमराज दिखने में खतरनाक और राक्षसी रूपी होते है। यमराज का खतरनाक रूप देखने पर पांचभूतो से बने शरीर में से निकली आत्मा अँगूष्ठमात्र शरीर में बदल जाती है। अँगूष्ठमात्र शरीर का अर्थ है अंगूठे के साइज का ,हिन्दू पुराण में कहा गया है ये वही शरीर का हिस्सा होता है जिसमें दक्ष प्रजापति का जन्म हुआ था जो उन ग्यारह प्रजापतियों में से एक थे जो सृस्टि के निर्माण में सामने आए । दरसअल हिन्दू पुराण में बताया गया है कि इंसान को बनाने का सफर बंदरों से नही बल्कि 11 ऋषियों से हुया था।
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अब जब आत्मा अंगूठे मात्र शरीर में बदल जाती है तो उसे यातना रूपी शरीर में बदलने का काम यमदूत का होता है।यातना रूपी शरीर वह शरीर की आत्मा होती हैं जो नर्क द्वारा दी गयी पीड़ा को सहन करती है। आत्मा की ऐसी स्थिति को प्रेतयोनि कहते है जो यमलोग की यात्रा करते समय परिवर्तित होती है। कुछ  लोग सोचते है आखिर एक आत्मा कैसे पीड़ा को सहन कर सकती है पर गरुड़ पुराण के अनुसार आत्मा पहले अंगोष्ठमात्र शरीर से यातना रूपी शरीर में परिवर्तित होती है।आत्मा यातना रूपी शरीर से अपनी सारी सज़ा पाकर ही मुक्त होती है।
यकमलोग की यात्रा कर समय प्रेतयोनि में मजूद प्रेत अपने परिवार दुआरा दिए गए पिंड दान का भोजन करते है और उसके समक्ष वापस न आने का संकल्प लेते हुए उन्हें आशीर्वाद देते है। इसलिए यह पुत्र या भाई की जिम्मेदारी होती है कि वे पिंड दान करें।

कुछ नई पीढ़ी के लोग इस पर विशवास नही करेंगे पर नर्क की सज़ायें किसी इंसान को पाप न करने का डर तो उत्पन्न करती है और किसी इंसान को पाप करने से बचाने ही हिन्दू धर्म है। हर इंसान को पाप करने से पहले एक बार गरुड़ पुराण पढ़ लेना चाहिए ।

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1 Comments

  1. Mera manna hai ki aadmi ko prithvi lok pe hi karni ka phal bhukatna cahiye,taki apni galti ka ehsaash ushe ho.

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